फास्ट फैशन ने कपड़ा उद्योग को तेजी से बदला है. आज पहले से कहीं ज्यादा, करीब 100 अरब उत्पाद हर साल बन रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय कंपनियों में नए स्टाइल बनाने और मोटा मुनाफा कमाने की होड़ मची है. और ये विशाल दायरा, बढ़ता ही जा रहा है. अनुमान है कि साल 2030 तक ये क्षेत्र 60% प्रतिशत और बड़ा हो जाएगा.
लेकिन सस्ते कपड़ों की कीमत ज़्यादा होती है- कामगारों की दयनीय हालत और पर्यावरण की तबाही. तेल उद्योग के बाद, कपड़ा उद्योग दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा प्रदूषक है...
कपड़ा बनाने के लिए फास्ट फैशन निर्माताओं का पसंदीदा पदार्थ है विस्कोस. ये लकड़ी के रेशों से बनता है. और इसे जलवायु-हितैषी की तरह पेश किया जाता है. लेकिन इससे कपड़ा बनाने में भी तमाम रसायन इस्तेमाल किए जाते हैं. ये रसायन लोगों को गंभीर रूप से बीमार कर रहे हैं, ना सिर्फ कामगारों को, बल्कि फैक्ट्री के आसपास रहने वालों को भी. जैसा भारत के मध्य प्रदेश राज्य में हो रहा है.
इसी दौरान, यूरोप में हर साल 4 लाख टन कपड़े कचरे में फेंके जाते हैं. 1 प्रतिशत से भी कम कपड़े रिसाइकल किए जाते हैं. फैशन जगत सस्टेनेबल होने का दिखावा तो करता है, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है.
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इसी दौरान, यूरोप में हर साल 4 लाख टन कपड़े कचरे में फेंके जाते हैं. 1 प्रतिशत से भी कम कपड़े रिसाइकल किए जाते हैं. फैशन जगत सस्टेनेबल होने का दिखावा तो करता है, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है.
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